नौ दिनों में बनेंगे 9 शुभ संयोग
श्री अभ्या आंजनया हनुमान मंदिर डोभी जौनपुर
हिन्दू धर्म में हनुमान जी को शक्ति और बल का प्रतीक माना जाता है। रामायण के मुख्य किरदार रहे हनुमान जी को भगवान श्री राम का भक्त माना जाता है। हनुमान जी की पूजा के लिए लोग मुख्य रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं लेकिन हनुमान जी की पूजा के लिए कुछ आसान मंत्र निम्न हैं धन- सम्पत्ति प्राप्ति हेतु इस मंत्र का जाप करना चाहिए: मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन । शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो।।
Thursday, April 4, 2019
Friday, May 25, 2018
श्री अभ्या आंजनया हनुमान मंदिर डोभी जौनपुर:
इस सिद्ध पीठ पर सच्चे मन से की गई #प्रार्थना फलित होती है। इस मन्दिर के मुख्य द्वार पर यह #महामन्त्र अंकित है --
महाज्ञान स्वरूपी च हनुमान अंजना सुतः !
कालज्ञान स्वरूपी च हनुमान राम भक्तः !
ब्रह्मज्ञान स्वरूपी च हनुमान वायु सुतः !
नमामि कपीशम, शरणं शरणं शरणं !
राम भक्ता शरणं ममा !
कालज्ञान स्वरूपी च हनुमान राम भक्तः !
ब्रह्मज्ञान स्वरूपी च हनुमान वायु सुतः !
नमामि कपीशम, शरणं शरणं शरणं !
राम भक्ता शरणं ममा !
श्री हनुमान मन्दिर, क़र्रा कॉलेज, डोभी, जौनपुर एक सिद्धि पीठ है।
यहाँ सच्चे मन से की गई प्रार्थना फलित होती है।
यहाँ सच्चे मन से की गई प्रार्थना फलित होती है।
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Thursday, July 21, 2016
सावन, सोमवार, शिवलिंग और महादेव की महिमा
सावन का महीना और भगवान शंकर यानी भक्ति
की ऐसी अविरल धारा जहां हर हर महादेव और बम बम भोल की गूंज से कष्टों का
निवारण होता है, मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। यूं तो भगवान शंकर की
पूजा के लिए सोमवार का दिन पुराणों में निर्धारित किया गया है। लेकिन
पौराणिक मान्यताओं में भगवान शंकर की पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन
महाशिवरात्रि, उसके बाद सावन के महीने में आनेवाला प्रत्येक सोमवार, फिर हर
महीने आनेवाली शिवरात्रि और सोमवार का महत्व है। लेकिन भगवान को सावन यानी
श्रावण का महीना बेहद प्रिय है जिसमें वह अपने भक्तों पर अतिशय कृपा
बरसाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में खासकर सोमवार के दिन
व्रत-उपवास और पूजा पाठ (रुद्राभिषेक,कवच पाठ,जाप इत्यादि) का विशेष लाभ
होता है। सनातन धर्म में यह महीना बेहद पवित्र माना जाता है यही वजह है कि
मांसाहार करने वाले लोग भी इस मास में मांस का परित्याग कर देते है।
सावन के महीने में सोमवार महत्वपूर्ण होता है। सोमवार का अंक 2 (पहला रविवार और दूसरा सोमवार) होता है जो चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्रमा मन का संकेतक है और वह भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। चंद्रमा मनसो जात: यानी चंद्रमा मन का मालिक है और उसके नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) अहम योगदान है। यानी भगवान शंकर शिव के मस्तक पर चंद्रमा को नियंत्रित कर उक्त साधक या भक्त के मन को एकाग्रचित कर उसे अविद्या रुपी माया के मोहपाश से मुक्त कर देते हैं। भगवान शंकर की कृपा से भक्त त्रिगुणातीत (सत, रज और तम गुण) भाव को प्राप्त करता है और यही उसके जन्म-मरण से मुक्ति का आधार बनता है।
सावन के महीने में सबसे अधिक बारिश होती है जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। इसलिए शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।
सावन और साधना के बीच चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक अहम कड़ी है जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति असंभव है। साधक की साधना जब शुरू होती है तब मन एक विकराल बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। उसे नियंत्रित करना सहज नहीं होता। लिहाजा मन को ही साधने में साधक को लंबा और धैर्य का सफर तय करना होता है। इसलिए कहा गया है कि मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। यानी मन से ही मुक्ति है और हम ही बंधन का कारण है। भगवान शंकर ने मस्तक में ही चंद्रमा को दृढ कर रखा है लिहाजा साधक की साधना निर्विघ्न संपन्न होती चली जाती है।
यजुर्वेद के एक मंत्र में मन को बड़ा ही प्रबल और चंचल कहा गया है। मन जड़ होते हुए भी सोते-जागते कभी भी चैन नहीं लेता। जितनी देर हम जागते रहते हैं, उतनी देर यह कुछ न कुछ सोचता हुआ भटकता रहता है। मन की इसी अस्थिर गति को थामने और दृढ करने के लिए भगवान शंकर हमें सावन जैसा मास प्रदान करते हैं। इसी सावन में साधना हर बाधाओं को पार कर आगे बढ़ती है। सावन,सोमवार और भगवान शंकर की अराधना सर्वथा कल्याणकारी है जिसमें भक्त मनोवांछित फर प्राप्त करते हैं।
शिव (शि-व) मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित करता है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में निर्देशित करने की बात करते हैं। 'शिवम' में यह ऊर्जा अनंत स्वरुप का रुप धारण करती है। 'ऊं नम: शिवाय' का महामंत्र भगवान शंकर की उस उर्जा को नमन है जहां शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में आध्यात्मिक किरणों से भक्तों के मन-मस्तिष्क को संचालित करती है। जीवन के भव-ताप से दूर कर भक्ति को प्रगाढ़ करते हुए सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से मुक्त कर मानसिक और शारीरिक रूप में विकार रहित स्वरूप प्रदान करती है। यह स्वरूप निर्विकार होता है जो परमब्रह्म से साक्षात्कार का रास्ता तय कराता है।
'शिव' शब्द की उत्पत्ति वश कान्तौ धातु से हुई हैं। जिसका मतलब जिसको सब चाहें वही शिव। जीवन में सभी आनंद की इच्छा करते हैं यानी शिव का एक अर्थ आंनद भी है। 'शिव' का एक अर्थ - 'कल्याणकारी' भी है। शिव यानी जो सबको प्यारा।
भगवान शंकर यूं तो अराधना से प्रसन्न होते हैं लेकिन सावन मास में जलाभिषेक, रुद्राभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों के साथ भगवान शंकर को जलधारा अर्पित करना साधक के आध्यात्मिक जीवन के लिए महाऔषधि के सामान है। पांच तत्व में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों ने शिव के अभिषेक को बहुत पवित्र महत्व बताया गया है।
जल में भगवान विष्णु का वास है, जल का एक नाम 'नार' भी है। इसीलिए भगवान विष्णु को नारायण कहते हैं। जल से ही धरती का ताप दूर होता है। जो भक्त, श्रद्धालु भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं उनके रोग-शोक, दुःख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं। भगवान शंकर को महादेव इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी द्वारा पूजे जाते हैं।
सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है।
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥
अर्थात् जो जल समस्त जगत् के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन् उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए। पुराणों में यह भी कहा गया है कि सावन के महीने में सोमवार के दिन शिवजी को एक बिल्व पत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इन दिनों शिव की उपासना का बहुत महत्व है।
सावन के महीने में सोमवार महत्वपूर्ण होता है। सोमवार का अंक 2 (पहला रविवार और दूसरा सोमवार) होता है जो चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्रमा मन का संकेतक है और वह भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। चंद्रमा मनसो जात: यानी चंद्रमा मन का मालिक है और उसके नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) अहम योगदान है। यानी भगवान शंकर शिव के मस्तक पर चंद्रमा को नियंत्रित कर उक्त साधक या भक्त के मन को एकाग्रचित कर उसे अविद्या रुपी माया के मोहपाश से मुक्त कर देते हैं। भगवान शंकर की कृपा से भक्त त्रिगुणातीत (सत, रज और तम गुण) भाव को प्राप्त करता है और यही उसके जन्म-मरण से मुक्ति का आधार बनता है।
सावन के महीने में सबसे अधिक बारिश होती है जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। इसलिए शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।
सावन और साधना के बीच चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक अहम कड़ी है जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति असंभव है। साधक की साधना जब शुरू होती है तब मन एक विकराल बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। उसे नियंत्रित करना सहज नहीं होता। लिहाजा मन को ही साधने में साधक को लंबा और धैर्य का सफर तय करना होता है। इसलिए कहा गया है कि मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। यानी मन से ही मुक्ति है और हम ही बंधन का कारण है। भगवान शंकर ने मस्तक में ही चंद्रमा को दृढ कर रखा है लिहाजा साधक की साधना निर्विघ्न संपन्न होती चली जाती है।
यजुर्वेद के एक मंत्र में मन को बड़ा ही प्रबल और चंचल कहा गया है। मन जड़ होते हुए भी सोते-जागते कभी भी चैन नहीं लेता। जितनी देर हम जागते रहते हैं, उतनी देर यह कुछ न कुछ सोचता हुआ भटकता रहता है। मन की इसी अस्थिर गति को थामने और दृढ करने के लिए भगवान शंकर हमें सावन जैसा मास प्रदान करते हैं। इसी सावन में साधना हर बाधाओं को पार कर आगे बढ़ती है। सावन,सोमवार और भगवान शंकर की अराधना सर्वथा कल्याणकारी है जिसमें भक्त मनोवांछित फर प्राप्त करते हैं।
शिव (शि-व) मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित करता है। इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में निर्देशित करने की बात करते हैं। 'शिवम' में यह ऊर्जा अनंत स्वरुप का रुप धारण करती है। 'ऊं नम: शिवाय' का महामंत्र भगवान शंकर की उस उर्जा को नमन है जहां शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में आध्यात्मिक किरणों से भक्तों के मन-मस्तिष्क को संचालित करती है। जीवन के भव-ताप से दूर कर भक्ति को प्रगाढ़ करते हुए सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से मुक्त कर मानसिक और शारीरिक रूप में विकार रहित स्वरूप प्रदान करती है। यह स्वरूप निर्विकार होता है जो परमब्रह्म से साक्षात्कार का रास्ता तय कराता है।
'शिव' शब्द की उत्पत्ति वश कान्तौ धातु से हुई हैं। जिसका मतलब जिसको सब चाहें वही शिव। जीवन में सभी आनंद की इच्छा करते हैं यानी शिव का एक अर्थ आंनद भी है। 'शिव' का एक अर्थ - 'कल्याणकारी' भी है। शिव यानी जो सबको प्यारा।
भगवान शंकर यूं तो अराधना से प्रसन्न होते हैं लेकिन सावन मास में जलाभिषेक, रुद्राभिषेक का बड़ा महत्व है। वेद मंत्रों के साथ भगवान शंकर को जलधारा अर्पित करना साधक के आध्यात्मिक जीवन के लिए महाऔषधि के सामान है। पांच तत्व में जल तत्व बहुत महत्वपूर्ण है। पुराणों ने शिव के अभिषेक को बहुत पवित्र महत्व बताया गया है।
जल में भगवान विष्णु का वास है, जल का एक नाम 'नार' भी है। इसीलिए भगवान विष्णु को नारायण कहते हैं। जल से ही धरती का ताप दूर होता है। जो भक्त, श्रद्धालु भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं उनके रोग-शोक, दुःख दरिद्र सभी नष्ट हो जाते हैं। भगवान शंकर को महादेव इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह देव, दानव, यक्ष, किन्नर, नाग, मनुष्य, सभी द्वारा पूजे जाते हैं।
सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीसे उनका नाम नीलकंठ महादेव पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। शिवपुराण में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रुप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है जिसमें कोई संशय नहीं है।
संजीवनं समस्तस्य जगतः सलिलात्मकम्।
भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मनः ॥
अर्थात् जो जल समस्त जगत् के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं वरन् उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए। पुराणों में यह भी कहा गया है कि सावन के महीने में सोमवार के दिन शिवजी को एक बिल्व पत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। इसलिए इन दिनों शिव की उपासना का बहुत महत्व है।
आखिर क्यों हैं सावन भगवान शिव का प्रिय महीना?
ऐसी मान्यता है कि प्रबोधनी एकादशी से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के निकल लेते है और अपना सारा कार्यभार अपने समकक्ष मस्त-मौला अवघड़ बाबा महादेव को सौंप देते है। भगवान भूतनाथ गौरा पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख दर्द को समझते है एंव उनकी मनोकामनाओं को पूर्ण करते है।शिव को सावन ही क्यों प्रिय है ?
महादेव को श्रावण मास वर्ष का सबसे प्रिय महीना लगता है। क्योंकि श्रावण मास में सबसे अधिक वर्षा होने के आसार रहते है, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती एंव हमारी कृषि के लिए भी अत्यन्त लाभकारी है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। हिन्दू कैलेण्डर में महीनों के नाम नक्षत्रों के आधार पर रखें गयें है।
जैसे वर्ष का पहला माह चैत्र होता है, जो चित्रा नक्षत्र के आधार पर पड़ा है, उसी प्रकार श्रावण महीना श्रवण नक्षत्र के आधार पर रखा गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है। चन्द्र भगवान भोले नाथ के मस्तक पर विराज मान है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीना प्रारम्भ होता है। सूर्य गर्म है एंव चन्द्र ठण्डक प्रदान करता है, इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है। जिसके फलस्वरूप लोक कल्याण के लिए विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव को ठण्डक व सुकून मिलता है। शायद यही कारण है कि शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।
Saturday, September 12, 2015
jai hanuman
प्राचीन भारत के 5 महान 'बाहुबली'
भारतवर्ष में पहले देव, असुर, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, मानव, नाग आदि जातियां निवास करती थीं। कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, संधव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते थे। भारत के पूर्वी भाग में किरात (चीनी) और पश्चिमी भाग में यवन (अरबी) बसे हुए थे। उस काल में एक से बढ़कर एक बाहुबली होते थे, लेकिन हम उन असुरों की बात नहीं कर रहे जो अपनी मायावी शक्ति के बल पर कुछ भी कर सकते थे हम बात कर रहे हैं ऐसे लोगों की जिनकी भुजाओं में अपार बल था।
बाहुबली का अर्थ होता है जिसकी भुजाओं में अपार बल है। बलवान, शक्तिमान और ताकतवर। दुनिया में आज भी ऐसे कई व्यक्ति है जिनकी भुजाओं में इतना बल है जितना कि किसी सामान्य इंसान या किसी कसरत करने वाले ताकतवर व्यक्ति की भुजाओं में भी नहीं होगा।
हम महाबली शेरा, महाबली खली, महाबली सतपाल या दारासिंह की बात नहीं कर रहे हैं। हम आपको बताएंगे भारत के प्राचीनकाल में ऐसे कौन-कौन से व्यक्ति थे जिनकी भुजाओं में आम इंसान की अपेक्षा कहीं ज्यादा बल था।
प्राचीन भारत के 5 महान 'बाहुबली'
भारतवर्ष में पहले देव, असुर, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, मानव, नाग आदि जातियां निवास करती थीं। कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, संधव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते थे। भारत के पूर्वी भाग में किरात (चीनी) और पश्चिमी भाग में यवन (अरबी) बसे हुए थे। उस काल में एक से बढ़कर एक बाहुबली होते थे, लेकिन हम उन असुरों की बात नहीं कर रहे जो अपनी मायावी शक्ति के बल पर कुछ भी कर सकते थे हम बात कर रहे हैं ऐसे लोगों की जिनकी भुजाओं में अपार बल था।
बाहुबली का अर्थ होता है जिसकी भुजाओं में अपार बल है। बलवान, शक्तिमान और ताकतवर। दुनिया में आज भी ऐसे कई व्यक्ति है जिनकी भुजाओं में इतना बल है जितना कि किसी सामान्य इंसान या किसी कसरत करने वाले ताकतवर व्यक्ति की भुजाओं में भी नहीं होगा।
हम महाबली शेरा, महाबली खली, महाबली सतपाल या दारासिंह की बात नहीं कर रहे हैं। हम आपको बताएंगे भारत के प्राचीनकाल में ऐसे कौन-कौन से व्यक्ति थे जिनकी भुजाओं में आम इंसान की अपेक्षा कहीं ज्यादा बल था।
प्राचीन भारत के 5 महान 'बाहुबली'
भारतवर्ष में पहले देव, असुर, गंधर्व, किन्नर, यक्ष, मानव, नाग आदि जातियां निवास करती थीं। कुरु, पांचाल, पुण्ड्र, कलिंग, मगध, दक्षिणात्य, अपरांतदेशवासी, सौराष्ट्रगण, तहा शूर, आभीर एवं अर्बुदगण, कारूष, मालव, पारियात्र, सौवीर, संधव, हूण, शाल्व, कोशल, मद्र, आराम, अम्बष्ठ और पारसी गण रहते थे। भारत के पूर्वी भाग में किरात (चीनी) और पश्चिमी भाग में यवन (अरबी) बसे हुए थे। उस काल में एक से बढ़कर एक बाहुबली होते थे, लेकिन हम उन असुरों की बात नहीं कर रहे जो अपनी मायावी शक्ति के बल पर कुछ भी कर सकते थे हम बात कर रहे हैं ऐसे लोगों की जिनकी भुजाओं में अपार बल था।
बाहुबली का अर्थ होता है जिसकी भुजाओं में अपार बल है। बलवान, शक्तिमान और ताकतवर। दुनिया में आज भी ऐसे कई व्यक्ति है जिनकी भुजाओं में इतना बल है जितना कि किसी सामान्य इंसान या किसी कसरत करने वाले ताकतवर व्यक्ति की भुजाओं में भी नहीं होगा।
हम महाबली शेरा, महाबली खली, महाबली सतपाल या दारासिंह की बात नहीं कर रहे हैं। हम आपको बताएंगे भारत के प्राचीनकाल में ऐसे कौन-कौन से व्यक्ति थे जिनकी भुजाओं में आम इंसान की अपेक्षा कहीं ज्यादा बश्रीहनुमानजी : जब ताकत की, बल की या शक्ति की बात हो तो हनुमानजी का नाम सबसे पहले रखा जाता है। श्रीरामदूत हनुमानजी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने संजीवनी बूटी का एक पहाड़ उठा लिया था।
श्रीरामदूत हनुमानजी के बारे में क्या कहें? उनके पराक्रम और बाहुबल के बारे में रामायण सहित दुनिया के हजारों ग्रंथों में लिखा हुआ है। केसरीनंदन पवनपुत्र श्रीहनुमानजी को भगवान शंकर का अंशशवतार माना जाता है।ल था।
Tuesday, September 1, 2015
SEP FESTIVAL
इस वर्ष के व्रत-त्योहार (2015)
सितंबर माह के त्योहार
दिऩांक प्रमुख त्योहार अन्य त्योहार हिंदी माह पक्ष तिथि
1 सितंबर गणेश चतुर्थी (चंद्रो.रा.8.29), पंचक कज्जली तीज, बहुला चौथ भाद्रपद कृष्ण तृतीया (3)
2 सितंबर पंचक स. (दिन 10.8 तक) भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी (4)
3 सितंबर गोगा पंचमी भाद्रपद कृष्ण पंचमी (5)
4 सितंबर हलषष्ठी व्रत हरछठ व्रत, दादाभाई नौरोजी ज. भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (6)
5 सितंबर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (स्मार्त) डॉ. राधाकृष्णन ज., शिक्षक दिवस भाद्रपद कृष्ण सप्तमी (7)
6 सितंबर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (वैष्णव) महर्षि दधीचि ज. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (8)
7 सितंबर गोगा नवमी भाद्रपद कृष्ण नवमी (9)
8 सितंबर व्यतिपात विश्व साक्षरता दि. भाद्रपद कृष्ण दशमी (10)
9 सितंबर जया (अजा) एकादशी (सर्वे), पुष्य नक्षत्र (प्रात: 6.7 से) गोवत्स द्वादशी, बछ बारस, ओम द्वादशी भाद्रपद कृष्ण एकादशी (11)
10 सितंबर प्रदोष व्रत, श्वेतां. पर्युषण प्रा., विश्नोई बलि. दि. पुष्य नक्षत्र (प्रात: 7.18 तक), गोविंद वल्लभपंत ज. भाद्रपद कृष्ण द्वादशी (12)
11 सितंबर शिव चतुर्दशी विनोबा भावे ज. भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी (13)
12 सितंबर श्राद्ध अमावस्या कुशोत्पाटिनी अमावस्या, पोला पिठोरा भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी (14)
13 सितंबर स्ना.दा. अमावस्या, ब्रह्मानंद लोधी नि.दि. कुंभ मुख्य स्नान (नासिक) भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (15)
14 सितंबर चंद्रदर्शन, महावीर जन्मवाचन हिन्दी दिवस, महादेवी वर्मा ज. भाद्रपद शुक्ल एकम (1)
15 सितंबर अभियंता दिवस जिल्हेज मास प्रा. भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (2)
16 सितंबर हरितालिका तीज, रोटतीज चंद्रदर्शन निषेध, चौथ चंद्र भाद्रपद शुक्ल तृतीया (3)
17 सितंबर गणेश जयंती (स्थापना) गणेश चतुर्थी (चं.अ.रा.8.15), विश्वकर्मा पूजा भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (4)
18 सितंबर ऋषि पंचमी, दसलक्षण, सौर मा. आश्विन प्रा. दि. जैन पर्युषण पर्व प्रा. भाद्रपद शुक्ल पंचमी (5)
19 सितंबर सूर्य षष्ठी, चंपा षष्ठी मोरयाई छठ भाद्रपद शुक्ल षष्ठी (6)
20 सितंबर संतान सातें, शील सप्तमी नवाखाई पर्व भाद्रपद शुक्ल सप्तमी (7)
21 सितंबर महालक्ष्मी व्रत प्रा. राधाष्टमी, दुर्वाष्टमी भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (8)
22 सितंबर भाद्रपद शुक्ल नवमी (9)
23 सितंबर सुगंध दशमी, ईद-उल-अदहा धूप खेवन पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी (10)
24 सितंबर पद्मा-परिवर्तनी एकादशी (सर्वे) डोल ग्यारस, बकरीद भाद्रपद शुक्ल एकादशी (11)
25 सितंबर् श्रवण द्वादशी, ओणम पर्व, पं. दीनदयाल ज. प्रदोष व्रत, पंचक (दिन 1.47 से), वामन ज. भाद्रपद शुक्ल द्वादशी (12)
26 सितंबर अनंत चतुर्दशी (मतांतर) पंचक, चतुर्दशी व्रत भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी (13)
27 सितंबर अनंत चतुर्दशी, पयुर्षण स., पूर्णिमा व्रत, विश्व पर्यटन दि. पंचक, गणेश विसर्जन, राजाराम मोहन राय पु. भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (14)
28 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध, श्राद्ध महालय प्रा., भगतसिंह ज. क्षमावाणी, पंचक, स्ना.दा. पूर्णिमा भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा (15)
29 सितंबर द्वितीया श्राद्ध, पंचक (शाम 6.7 तक) षोडशकारण व्रत पूर्ण, विश्व ह्रदय दि. आश्विन कृष्ण एकम-द्वितीया (1-2)
30 सितंबर तृतीया श्राद्ध बैंक अर्द्धवार्षिक लेखाबं
सितंबर माह के त्योहार
दिऩांक प्रमुख त्योहार अन्य त्योहार हिंदी माह पक्ष तिथि
1 सितंबर गणेश चतुर्थी (चंद्रो.रा.8.29), पंचक कज्जली तीज, बहुला चौथ भाद्रपद कृष्ण तृतीया (3)
2 सितंबर पंचक स. (दिन 10.8 तक) भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी (4)
3 सितंबर गोगा पंचमी भाद्रपद कृष्ण पंचमी (5)
4 सितंबर हलषष्ठी व्रत हरछठ व्रत, दादाभाई नौरोजी ज. भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (6)
5 सितंबर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (स्मार्त) डॉ. राधाकृष्णन ज., शिक्षक दिवस भाद्रपद कृष्ण सप्तमी (7)
6 सितंबर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (वैष्णव) महर्षि दधीचि ज. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (8)
7 सितंबर गोगा नवमी भाद्रपद कृष्ण नवमी (9)
8 सितंबर व्यतिपात विश्व साक्षरता दि. भाद्रपद कृष्ण दशमी (10)
9 सितंबर जया (अजा) एकादशी (सर्वे), पुष्य नक्षत्र (प्रात: 6.7 से) गोवत्स द्वादशी, बछ बारस, ओम द्वादशी भाद्रपद कृष्ण एकादशी (11)
10 सितंबर प्रदोष व्रत, श्वेतां. पर्युषण प्रा., विश्नोई बलि. दि. पुष्य नक्षत्र (प्रात: 7.18 तक), गोविंद वल्लभपंत ज. भाद्रपद कृष्ण द्वादशी (12)
11 सितंबर शिव चतुर्दशी विनोबा भावे ज. भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी (13)
12 सितंबर श्राद्ध अमावस्या कुशोत्पाटिनी अमावस्या, पोला पिठोरा भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशी (14)
13 सितंबर स्ना.दा. अमावस्या, ब्रह्मानंद लोधी नि.दि. कुंभ मुख्य स्नान (नासिक) भाद्रपद कृष्ण अमावस्या (15)
14 सितंबर चंद्रदर्शन, महावीर जन्मवाचन हिन्दी दिवस, महादेवी वर्मा ज. भाद्रपद शुक्ल एकम (1)
15 सितंबर अभियंता दिवस जिल्हेज मास प्रा. भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (2)
16 सितंबर हरितालिका तीज, रोटतीज चंद्रदर्शन निषेध, चौथ चंद्र भाद्रपद शुक्ल तृतीया (3)
17 सितंबर गणेश जयंती (स्थापना) गणेश चतुर्थी (चं.अ.रा.8.15), विश्वकर्मा पूजा भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (4)
18 सितंबर ऋषि पंचमी, दसलक्षण, सौर मा. आश्विन प्रा. दि. जैन पर्युषण पर्व प्रा. भाद्रपद शुक्ल पंचमी (5)
19 सितंबर सूर्य षष्ठी, चंपा षष्ठी मोरयाई छठ भाद्रपद शुक्ल षष्ठी (6)
20 सितंबर संतान सातें, शील सप्तमी नवाखाई पर्व भाद्रपद शुक्ल सप्तमी (7)
21 सितंबर महालक्ष्मी व्रत प्रा. राधाष्टमी, दुर्वाष्टमी भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (8)
22 सितंबर भाद्रपद शुक्ल नवमी (9)
23 सितंबर सुगंध दशमी, ईद-उल-अदहा धूप खेवन पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी (10)
24 सितंबर पद्मा-परिवर्तनी एकादशी (सर्वे) डोल ग्यारस, बकरीद भाद्रपद शुक्ल एकादशी (11)
25 सितंबर् श्रवण द्वादशी, ओणम पर्व, पं. दीनदयाल ज. प्रदोष व्रत, पंचक (दिन 1.47 से), वामन ज. भाद्रपद शुक्ल द्वादशी (12)
26 सितंबर अनंत चतुर्दशी (मतांतर) पंचक, चतुर्दशी व्रत भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी (13)
27 सितंबर अनंत चतुर्दशी, पयुर्षण स., पूर्णिमा व्रत, विश्व पर्यटन दि. पंचक, गणेश विसर्जन, राजाराम मोहन राय पु. भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी (14)
28 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध, श्राद्ध महालय प्रा., भगतसिंह ज. क्षमावाणी, पंचक, स्ना.दा. पूर्णिमा भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा (15)
29 सितंबर द्वितीया श्राद्ध, पंचक (शाम 6.7 तक) षोडशकारण व्रत पूर्ण, विश्व ह्रदय दि. आश्विन कृष्ण एकम-द्वितीया (1-2)
30 सितंबर तृतीया श्राद्ध बैंक अर्द्धवार्षिक लेखाबं
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